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मध्‍यप्रदेश में 6 महीना आगे बढ़ सकते है निकाय चुनाव, यह है वजह

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भोपाल। कांग्रेस सरकार नगरीय निकाय चुनाव में इस बार बड़ा बदलाव करने जा रही है। ज्यादा से ज्यादा नगरीय निकायों में कांग्रेस का कब्जा हो, इसके लिए कमलनाथ मंत्रिमंडल की उप समिति ने नगर पालिक निगम और नगर पालिका अधिनियम में कुछ संशोधन सुझाए हैं।

चुनाव में सबसे बड़ा बदलाव महापौर और नगर पालिका-नगर परिषद के अध्यक्ष के चुनाव को लेकर होगा। अब तक जनता इन्हें सीधे चुन रही थी, लेकिन समिति ने सुझाव दिया है कि महापौर और अध्यक्ष पद का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से कराया जाए। इसके साथ ही दो बड़े बदलावों पर भी सहमति बन गई है। राज्य सरकार अध्यादेश लाकर इन्हें लागू करेगी। समिति ने अपनी मंशा मुख्यमंत्री कमलनाथ को बता दी है, अब आखिरी फैसला मुख्यमंत्री करेंगे।

 

दरअसल इस साल के अंत तक प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव होने हैं। वर्तमान में 16 नगर निगम के महापौर समेत अधिकांश नगर पालिका और नगर परिषद पर भाजपा के अध्यक्ष काबिज हैं, लेकिन प्रदेश में सरकार बनाने के बाद कांग्रेस इन निकायों पर अपना कब्जा चाहती है। इसी मकसद से अधिनियम में संशोधन के लिए सीएम कमलनाथ ने मंत्रीमंडल की उप समिति का गठन किया है। अब समिति से मिले प्रस्तावों को कैबिनेट की बैठक में लाया जाएगा। इसके बाद अध्यादेश भी लाया जाएगा।

नगरीय निकाय चुनाव में बदलाव और उनकी वजह

 

पहला संशोधन : महापौर और अध्यक्षों का चुनाव डायरेक्ट न होकर पार्षद करें

वजह : मंत्रियों की बैठक में बात आई कि यदि तय समय पर नगरीय निकाय चुनाव हुए तो कांग्रेस ज्यादातर सीटों पर हारेगी। महापौर और अध्यक्षों का चुनाव जनता करती है तो इसका फायदा भाजपा को मिल जाएगा।

 

दूसरा संशोधन : पार्टी सिंबल के बजाय जिला पंचायत की तर्ज पर हों चुनाव

वजह : इस मामले में भी कांग्रेस का मानना है कि प्रदेश में अभी सरकार बने सिर्फ छह महीने हुए हैं और इस दौरान कोई बड़ी उपलब्धि जनता के बीच नहीं गई है। ऐसे में यदि चुनाव बिना सिंबल के होते हैं तो इसका फायदा कांग्रेस को ज्यादा मिलेगा।

 

तीसरा संशोधन : परिसीमन चुनाव के छह महीने पहले न होकर सिर्फ दो महीने पहले हो

वजह : कांग्रेस सरकार का मानना है कि छह महीने का वक्त लंबा होता है। ऐसे में सरकार जैसे ही कोई अच्छा काम कर जनता में अपनी छवि बनाती है तो उसके दो महीने के अंदर चुनाव कराकर इसका फायदा चुनाव में ले लिया जाए।

 

लगभग छह महीने टल सकते हैं चुनाव, मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम रोका

सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार ने नगरीय निकाय चुनावों को फिलहाल टालने का मन बना लिया है। यह चुनाव नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित थे। दअरसल, नगर निगम या नगर पालिका-परिषद के कार्यकाल की गणना परिषद की पहली बैठक से की जाती है। ज्यादातर निकायों की पहली बैठक फरवरी 2015 में शुरू हुई थी। इसे आधार बनाकर कुछ महीने सरकार चुनाव टालेगी। प्रदेश में करीब 327 नगरीय निकायों में चुनाव होना है। वार्डों का परिसीमन और आरक्षण जिला कलेक्टर को करना था। वहीं महापौर-नगर पालिका अध्यक्ष का आरक्षण राज्य स्तर पर होना है। यह काम फिलहाल स्र्क गया है। वहीं राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदाता पुनरीक्षण का काम भी फिलहाल टाल दिया है।

 

कमेटी कर रही है विचार

अधिनियम में संशोधन के लिए बनी कमेटी महापौर का चुनाव सीधे कराने समेत कई बातों पर विचार कर रही है। इस मामले में जल्द ही अंतिम निर्णय लेकर संशोधन कर दिया जाएगा।

 

 

- सज्जन सिंह वर्मा अध्यक्ष मंत्रीमंडल उपसमिति

 

पार्षदों के जरिए हो महापौर का चुनाव

महापौर का चुनाव पार्षदों के जरिए होने से आपस में कनेक्ट बना रहेगा। वर्ना अभी महापौर अलग चुनाव लड़ता है और पार्षद अलग। ऐसे में दोनों का आपस में कनेक्ट नहीं रहता है जिससे शहर का विकास प्रभावित होता है। इसके अलावा चुनाव पार्टी सिंबल के बजाय व्यक्ति आधारित होना चाहिए।

 

- प्रियव्रत सिंह, सदस्य मंत्रीमंडल उपसमिति