चंदौली

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती की पूर्व संध्या पर संगोष्ठी का आयोजन *दुनिया की कथा का वाचक - मुंशी प्रेमचंद - दिनेश चन्द्र

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पीडीडीयू नगर। अस्मिता नाट्य संस्थान एवं रंजीत प्रसाद मेमोरियल ट्रस्ट के तत्वाधान में कालजई साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती की पूर्व संध्या पर एक संगोष्ठी का आयोजन ज्योति कॉन्वेंट स्कूल में किया गया,इस संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए मुख्य वक्ता पूर्व वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी दिनेश चंद्रा ने कहा कि हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के उपन्यास और कहानी के रचनाकारों की चर्चा की जाय तो 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कोई भी मुंशी प्रेमचंद जी के इर्द-गिर्द नज़र नही आता है। यह कालखंड 'प्रेमचंद युग' के नाम से जाना जाता है। इस कालखंड में विश्व मे अधिक से अधिक लिखने वाले साहित्य सृजन में लगे रचनाकारों में से एक मुंशी प्रेमचंद जी भी थे । ये उपन्यास और कहानी सम्राट के रूप में इस विधा के अनमोल रत्न है। प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर भी लोक पीड़ा और वेदना को कागज पर उकेरते रहे जो आगे चलकर लिखा गया साहित्य सामाजिक और सांस्कृतिक दस्तावेज बन गया। इनकी रची कहानियां और उपन्यास से हिंदी साहित्य को समृध्दि मिली जो एक अमूल्य निधि है।अगले वक्ता कवि इंद्रजीत तिवारी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जी गरीबों मजलूमों के बेख़ौफ़ आवाज थे।गद्य - पद्य और उपन्यास के लिए अपने समय के सरताज थे।।जाति, धर्म, मज़हब से अलग रहकर अपने समय के पाखंडी, दकियानूसी विचार धाराओं से अलग रहकर हरजोर जुल्म को जन-जन तक पहुंचाने में आजीवन सफल रहे।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रतन लाल श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद जी कायस्थ समाज के शिरोमणि हैं उन्होंने अपनी रचनाओं से समाज में व्याप्त से कुरीतियों के खिलाफ ग़रीबों की आवाज़ उठाई।विशेष अतिथि घनश्याम शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद जी ग़रीबों, मज़दूरों के मसीहा थे।इसके पूर्व डॉक्टर आनन्द श्रीवास्तव,डॉक्टर राजकुमार गुप्ता सहित अन्य अतिथियों ने माता सरस्वती की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।अध्यक्षता डॉ राजकुमार गुप्ता व संचालन कृष्ण मोहन गुप्ता ने किया।इस संगोष्ठी में सर्वश्री विजय कुमार गुप्ता,शिवनाथ गुप्ता, कृष्ण कांत गुप्ता,हेमंत विश्वकर्मा,राकेश अग्रवाल, दिनेश शर्मा, देवेश कुमार महाराज इत्यादि लोग शामिल रहे।

 

 

 

 

सूर्य प्रकाश सिंह की रिपोर्ट